Friday, August 26, 2011

इतना क्यूँ सोते हैं हम? - प्रसून जोशी

प्रसून जोशी
इतना क्यूँ सोते हैं हम
इतना क्यूँ सोते हैं हम
इतना लम्बा इतना गहरा बेसुध क्यूँ सोते हैं हम

दबे पाँव काली रातें आती जाती हैं
दबे पाँव क्या कभी बेधड़क हो जाती हैं
और बस करवट लेकर सब खोते हैं हम
इतना क्यूँ सोते हैं हम

नींद हैं या फिर नशा है कोई
धीरे धीरे जिसकी आदत पड़ जाती हैं
झूठ की बारिश में सच की खामोश बांसुरी
झूठ की बारिश में सच की खामोश बांसुरी
एक झोंके की राह देखती के सड़ जाती हे
बाद में क्यूँ रोते हैं हम
इतना क्यूँ सोते हैं हम

खेत हमारा बीज हमारे
हेरत क्या अब फसल खड़ी हैं
खेत हमारा बीज हमारे
हेरत क्या अब फसल खड़ी हैं
काटनी होगी छांटनी होगी
आज चुनोती बहुत बड़ी हैं
कांटे क्यूँ बोते हैं हम
इतना क्यूँ सोते हैं हम

सबने खेला और सब हारे
सबने खेला और सब हारे
बड़ा अनोखा अजब खेल हैं
इंजिन काला डब्बे काले
बड़ी पुरानी धीट रेल हैं
इस रेल में क्यूँ होते हैं हम
इतना क्यूँ सोते हैं हम

लोरी नहीं तमाचा दे दो
लोरी नहीं तमाचा दे दो
एक छोटीसी आशा दे दो
वर्ना फिर से सो जायेंगे
वर्ना फिर से सो जायेंगे
सपनो में फिर खो जायेंगे
चलो पाप धोंते हे हम
इतना क्यूँ सोते हैं हम
इतना लम्बा इतना गहरा बेसुध क्यूँ सोते हैं हम

- प्रसून जोशी

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