भोले थे, अब कर दिया भाला किसी ने
है शहर ये कोयलों का, ये मगर न भूल जाना
लाल शोले भी इसी बस्ती में रहते हैं युगों से
रास्तों में धूल है कीचड़ है, पर ये याद रखना
ये जमीं धुलती रही संकल्प वाले आंसुओं से
मेरे आँगन को है धो डाला किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने
आग बेवजह कभी घर से निकलती ही नहीं है
टोलियाँ जत्थे बना कर चीख यूं चलती नहीं हैं
रात को भी देखने दो आज तुम सूरज के जलवे
जब तपेगी ईंट तभी होश में आयेंगे तलवे
तोड़ डाला मौन का ताला किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने
भोले थे, अब कर दिया भाला किसी ने
- प्रसून जोशी